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63. कदकारिदाणुमोदणरहिदं तह पासुगं पसत्थं च ।
दिण्णं परेण भत्तं समभुत्ती एसणासमिदी॥
तह
कदकारिदाणुमोदण- [(कदकारिद)+ रहिदं (अणुमोदणरहियं)]
[(कद) भूकृ अनि- कृत (कर(प्रे.)-कार-कारिद)भूकृ-कारित और (अणुमोदण)-(रहिद) अनुमोदना के बिना भूकृ 1/1 अनि] अव्यय
तथा पासुगं
(पासुग) 1/1 वि (पसत्थ) 1/1 वि अव्यय
और दिण्णं
(दिण्ण) भूकृ 1/1 अनि दिया गया (पर) 3/1 वि
दसरे के द्वारा भत्तं (भत्त) 1/1
आहार समभुत्ती [(सम) वि-(भुत्ति ) 1/1] समभाव से आहार एषणासमिदी [(एषणा)-(समिदि) 1/1] एषणासमिति
प्रासुक
पसत्थं
प्रशस्त
परेण
अन्वय- कदकारिदाणुमोदणरहिदं भत्तं पासुगंच पसत्थं तह परेण दिण्णं समभुत्ती एसणासमिदी।
अर्थ- (साधु का आहार) कृत (स्वयं द्वारा निर्मित/उत्पादित), कारित (दूसरे के द्वारा बनवाया हुआ) तथा अनुमोदना (स्वयं की सहमति) के बिना (होता है)। (वह) आहार प्रासुक और प्रशस्त तथा दूसरे के द्वारा दिया गया (होता है)। (इस तरह साधु द्वारा) समभाव से आहार (ग्रहण करना) एषणासमिति (कही जाती है)।
1.
समास के अन्त में रहित का अर्थ के बिना' होता है।
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नियमसार (खण्ड-1)