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62. पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदप्पप्पसंसियं वयणं ।
परिचत्ता सपरहिदं भासासमिदी वदंतस्स ॥
पेसुण्णहासकक्कस- [(पेसुण्णहासकक्कसपरणिंद)+ परणिंदप्पप्पसंसियं (अप्पप्पसंसियं)]
[(पेसुण्ण)-(हास) वि- पैशुन्य (चुगली), (कक्कस) वि-(पर) वि- मजाक/मखौल, (णिंदा-णिंद)-(अप्प)- कटुवचन, परनिंदा (प्पसंस) भूक 2/1] और अपनी प्रशंसा
किये गये वयणं (वयण) 2/1
वचन को परिचत्ता (परिचत्ता) संकृ अनि छोड़कर
[(स-पर) वि-(हिद) स्व-पर हितकारी
भूक 2/1 अनि भासासमिदी [(भासा)-(समिदि) 1/1] भाषासमिति वदंतस्स (वद) वकृ 6/1 बोलते हुए के
सपरहिदं
बोलो
अन्वय- पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदप्पप्पसंसियं वयणं परिचत्ता सपरहिदं वदंतस्स भासासमिदी ।
. अर्थ- पैशुन्य (चुगली), मजाक/मखौल, कटुवचन, परनिन्दा (और) अपनी प्रशंसा किये गये वचन को छोड़कर स्व-पर हितकारी (वचन को) बोलते हुए (साधु) के भाषासमिति (होती है)।
नियमसार (खण्ड-1)
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