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________________ 61. पासुगमग्गेण दिवा अवलोगंतो जुगप्पमाणं हि । गच्छइ पुरदो समणो इरियासमिदी हवे तस्स ॥ पासुगमग्गेण दिवा अवलोगंतो जुगप्पमाणं [(पासुग) वि-(मग्ग) प्रासुक मार्ग पर 3/1] अव्यय दिन में (अवलोग) वकृ 1/1 देखता हुआ [(जुग)-(प्पमाण) 2/1] चार हाथ परिमाण को अव्यय निश्चय ही (गच्छ) व 3/1 सक गमन करता है अव्यय आगे (समण) 1/1 [(इरिया)-(समिदि) 1/1] ईर्या समिति (हव) व 3/1 अक होती है (त) 6/1 सवि उसके गच्छइ पुरदो श्रमण समणो इरियासमिदी हवे तस्स अन्वय- पासुगमग्गेण दिवा जुगप्पमाणं पुरदो अवलोगंतो समणो गच्छइ तस्स हि इरियासमिदी हवे। अर्थ- प्रासुक (जन्तुरहित) मार्ग पर दिन में चार हाथ परिमाण को आगे देखता हुआ (जो) श्रमण गमन करता है उस (श्रमण) के निश्चय ही ईर्या समिति होती है। 1. मार्गवाचक शब्दों में तृतीया होती है। (प्राकृत-व्याकरणः पृ 36) (74) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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