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60. सव्वेसिं गंथाणंचागो णिरवेक्खभावणापुव्वं ।
पंचमवदमिदि भणिदं चारित्तभरं वहंतस्स ॥
से युक्त
सव्वेसिं
(सव्व) 6/2 सवि समस्त गंथाणं (गंथ) 6/2
परिग्रहों का चागो (चाग) 1/1
त्याग णिरवेक्खभावणापुव्वं [(णिरवेक्ख) वि-(भावणा)- अपेक्षारहित चिंतन
(पुव्व) 1/1 वि] पंचमवदमिदि [(पंचमवदं)+(इदि)]
पंचमवदं [(पंचम) वि- पाँचवा व्रत (वद) 1/1] इदि (अ)
पादपूरक भणिदं (भण) भूकृ 1/1
कहा गया चारित्तभरं [(चारित्त)-(भर) 2/1] चारित्र के अतिशय को वहंतस्स (वह) वकृ 4/1 धारण करते हुए के
लिए
अन्वय- चारित्तभरं वहंतस्स सव्वेसिं गंथाणं णिरवेक्खभावणापुव्वं चागो पंचमवदमिदि भणिदं ।
अर्थ- (किसी भी प्रकार के) चारित्र के अतिशय को धारण करते हुए (साधु) के लिए समस्त परिग्रहों का अपेक्षारहित चिंतन से युक्त त्याग पाँचवा (अपरिग्रह) व्रत कहा गया (है)।
नियमसार (खण्ड-1)
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