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________________ 57. रागेण व दोसेण व मोहेण व मोसभासपरिणामं जो जहदि * साहु सया विदियवदं होइ तस्सेव रागेण व दोसेण व मोहेण व मोसभासपरिणामं । जो पजहदि साहु सया विदियवदं होइ तस्सेव ॥ 1. * (70) (राग) 3 / 1 अव्यय (दोस) 3 / 1 अव्यय (मोह) 3 / 1 अव्यय [ (मोस ) - ( भासा भास ) - - (परिणाम) 2 / 1 ] (ज) 1 / 1 सवि राग से अथवा द्वेष से [(तस्स) + (एव)] तस्स (त) 6/1 सवि एव (अ) = ही अथवा मोह से पुनरावृत्ति भाषा की पद्धति असत्य भाषा के भाव को जो छोड़ता है (पजह) व 3 / 1 सक (साहु) 1 / 1 साधु अव्यय सदा [ ( विदिय) वि - ( वद ) 1 / 1] दूसरा व्रत (हो) व 3/1 अक होता है अन्वय- रागेण व दोसेण व मोहेण व मोसभासपरिणामं जो 'साहु सया पजहदि तस्सेव विदियवदं होइ । अर्थ - राग से अथवा द्वेष से अथवा मोह से ( उत्पन्न) असत्य भाषा के भाव को जो साधु सदा छोड़ता है उस (साधु) के ही दूसरा (सत्य) व्रत होता है। उसके ही छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'भासा' का 'भास' किया गया है । प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है । (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517) नियमसार (खण्ड-1 -1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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