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48. असरीरा अविणासा अणिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा।
जह लोयग्गे सिद्धा तह जीवा संसिदी णेया ॥
असरीरा अविणासा अणिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा
जह
(असरीर) 1/2 वि (अविणास) 1/2 वि (अणिंदिय) 1/2 वि (णिम्मल) 1/2 वि (विसुद्धप्प) 1/2 वि अव्यय (लोयग्ग) 7/1 (सिद्ध) 1/2 अव्यय (जीव) 1/2 (संसिदि) 2/2→7/2 (णेय) विधिकृ 1/2 अनि
अशरीरी अविनाशी अतीन्द्रिय निर्मल विशुद्धात्मा जिस प्रकार लोक के अग्रभाग में सिद्ध उसी प्रकार जीव संसार चक्र में समझे जाने चाहिये
लोयग्गे सिद्धा तह जीवा संसिदी
णेया
अन्वय- जह लोयग्गे सिद्धा असरीरा अविणासा अणिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा तह संसिदी जीवा णेया ।
अर्थ- जिस प्रकार लोक के अग्रभाग में (स्थित) सिद्ध अशरीरी, अविनाशी, अतीन्द्रिय, निर्मल (और) विशुद्धात्मा (होते हैं) उसी प्रकार संसार चक्र में (भ्रमण करते हुए) (द्रव्य दृष्टि से) जीव समझे जाने चाहिये।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
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नियमसार (खण्ड-1)