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49. एदे सव्वे भावा ववहारणयं पडुच्च भणिदा हु।
सव्वे सिद्धसहावा सुद्धणया संसिदी जीवा॥
ये
सभी
भावा ववहारणयं पडुच्च
भणिदा
(एद) 1/2 सविः (सव्व) 1/2 सवि (भाव) 1/2
भाव (ववहारणय) 2/1
व्यवहार नय को (पडुच्च) संकृ अनि आश्रय करके (भण) भूक 1/2 कहे गये अव्यय
निश्चय ही (सव्व) 1/2 सवि सभी [(सिद्ध)-(सहाव) 1/2 वि] सिद्ध स्वभाववाले (सुद्धणय) 5/1 शुद्धनय से (संसिदि) 2/2+7/2 संसार चक्र में (जीव) 1/2
सेद्धसहावा सुद्धणया संसिदी
जीवा
जीव
अन्वय- एदे सव्वे भावा हु ववहारणयं पडुच्च भणिदा संसिदी सुद्धणया सव्वे जीवा सिद्धसहावा । ____ अर्थ- ये सभी भाव (विभाव पर्यायें) निश्चय ही व्यवहारनय (लौकिक दृष्टि) को आश्रय करके कहे गये हैं। संसार चक्र में शुद्धनय (शुद्ध आत्मिक दृष्टि) से सभी जीव सिद्ध स्वभाववाले (कहे गये हैं)।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
नियमसार (खण्ड-1)
(61)