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42.. चउगइभवसंभमणं जाइजरामरणरोगसोगा य।
कुलजोणिजीवमग्गणठाणा जीवस्स णो संति॥
चउगइभवसंभमणं [(चउ) वि-(गइ)-(भव)- चारगतिरूप संसार में
(संभमण) 1/1] | परिभ्रमण जाइजरामरणरोग- [(जाइ)-(जरा)-(मरण)- जन्म, बुढ़ापा, मृत्यु, सोगा (रोग)-(सोग) 1/2] व्याधि, खेद य
अव्यय कुलजोणिजीवमग्गण-[(कुल)-(जोणि)-(जीव)- वंश, उत्पत्ति स्थान
(मग्गण)-(ठाण) 1/2] जीवस्थान, मार्गणा
और
ठाणा
स्थान
जीवस्स
(जीव) 4/1
जीव के लिये
अव्यय
नहीं
संति
(संति) व 3/2 अक अनि
होते हैं
अन्वय- जीवस्स चउगइभवसंभमणं जाइजरामरणरोगसोगा कुलजोणिजीवमग्गणठाणा य णो संति।
अर्थ- जीव (परम-आत्मा) के लिये चारगतिरूप संसार में परिभ्रमण, जन्म, बुढ़ापा, मृत्यु, व्याधि, खेद, वंश, उत्पत्ति स्थान, जीवस्थान और मार्गणास्थान नहीं होते हैं।
नोटः विस्तार के लिए टीका देखें।
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नियमसार (खण्ड-1)