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41.
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णो खइयभावठाणा णो खयउवसमसहावठाणा वा। ओदइयभावठाणा णो उवसमणे सहावठाणा वा ॥
नहीं
ठाणा
अव्यय खइयभावठाणा [(खइय)-(भाव)-(ठाण) क्षय की भावदशा
1/2] अव्यय
नहीं खयउवसमसहाव- [(खय)-(उवसम)-(सहाव)- क्षयोपशम से उत्पन्न (ठाण) 1/2]
स्वभावदशा वा अव्यय
तथा ओदइयभावठाणा [(ओदइय) वि-(भाव)- उदय से उत्पन्न (ठाण) 1/2]
भाव दशा अव्यय
नहीं उवसमणे (उवसमण) 7/1+3/1 उपशम से सहावठाणा [(सहाव)-(ठाण) 1/2] स्वभाव दशा
अव्यय
णो
वा
भी
अन्वय-खइयभावठाणाणोखयउवसमसहावठाणोणो ओदइयभावठाणा णो वा उवसमणे सहावठाणा वा ।
___ अर्थ- (परम आत्मा में) (कर्मों के अल्पकालिक) क्षय की भावदशा नहीं (है), (कर्मों के) क्षयोपशम से उत्पन्न स्वभावदशा नहीं (है)। (कर्मों के) उदय से उत्पन्न भाव दशा नहीं (है) तथा (कर्मों के ) उपशम से (उत्पन्न) स्वभाव दशा भी (नहीं है)।
1.
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-135)
नियमसार (खण्ड-1)
(53)