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________________ 35. संखेज्जासंखेज्जाणंतपदेसा हवंति मुत्तस्स । धम्माधम्मस्स पुणो जीवस्स असंखदेसा हु॥ संखेज्जासंखेज्जा- [(संखेज्ज)+(असंखेज्ज)+ णंतपदेसा (अणंतपदेसा)] [(संखेज्ज)वि-(असंखेज्ज)वि- संख्यात, असंख्यात (अणंत) वि (पदेस) 1/2] और अनन्त प्रदेश हवंति (हव) व 3/2 अक होते हैं मुत्तस्स (मुत्त) 6/1 वि मूर्त (पुद्गलद्रव्य) के [(धम्म)+(अधम्मस्स)] [(धम्म)-(अधम्म) 6/1] धर्म और अधर्म (द्रव्य) के पुणो अव्यय तथा जीवस्स (जीव) 6/1 जीव के असंखदेसा [(असंख)-(देस) 1/2] असंख्यात प्रदेश अव्यय पादपूरक धम्माधम्मस्स 60/ अन्वय- मुत्तस्स संखेज्जासंखेज्जाणंतपदेसा हवंति धम्माधम्मस्स पुणो जीवस्स असंखदेसा हु। अर्थ- मूर्त (पुद्गलद्रव्य) के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश होते हैं। धर्म (द्रव्य), अधर्म (द्रव्य) तथा जीव (द्रव्य) के असंख्यात प्रदेश (होते हैं)। (46) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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