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________________ 36. लोयायासे तावं इदरस्स अणंतयं हवे देसा । कालस्स ण कायत्तं एयपदेसो हवे जम्हा ॥ लोयायासे तावं इदरस्स अणंतयं' हवे देसा कालस्स ण कायत्तं एयपदेसो हवे जम्हा (लोयायास) 7/1 (ताव ) 2 /11 / 2 ( इदर) 6/1 वि (अनंतय) 2 /11 / 2 वि 'य' स्वार्थिक (हव) व 3 / 2 अक (देस) 1/2 (काल) 6/1 अव्यय नियमसार (खण्ड-1) ( काय ) 1 / 1 [(एय) वि (पदेस) 1 / 1] - (हव) व 3/1 अक अव्यय लोकाकाश में उतने इससे भिन्न अनन्त होते हैं प्रदेश काल (द्रव्य) का नहीं कायत्व एक प्रदेश होता है क्योंकि अन्वय- लोयायासे तावं इदरस्स अणंतयं देसा हवे कालस्स एयपदेसो हवे जम्हा कायत्तं ण । अर्थ- लोकाकाश में उतने (ही) (असंख्यात) (प्रदेश होते हैं) इससे भिन्न (अलोकाकाश) के अनन्त प्रदेश होते हैं। काल (द्रव्य) का एक प्रदेश होता है क्योंकि (कालद्रव्य के) कायत्व नहीं (है) । 1. प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है । (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3 - 137 वृत्ति) (47)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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