________________
.
34. एदे छद्दव्वाणि य कालं मोत्तूण अस्थिकाय त्ति ।
णिट्ठिा जिणसमये काया हु बहुप्पदेसत्तं ॥
A
छद्दव्वाणि
छ द्रव्य
कालं मोत्तूण अस्थिकाय त्ति
(एद) 1/2 सवि [(छ)-(द्दव्व) 1/2] अव्यय (काल) 2/1 (मोत्तूण) संकृ अनि [(अस्थिकाया)+ (इति)] अस्थिकाया (अत्थिकाय)
पादपूरक काल को छोड़कर
अस्तिकायवाले
1/2 वि
णिद्दिट्ठा जिणसमये
इति (अ) =
शब्दस्वरूपद्योतक (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि कहे गये (जिणसमय) 7/1
जिनशासन में (काय) 1/2
काय अव्यय
पादपूरक [(बहु) वि-(प्पदेसत्त) 1/1] बहुप्रदेशता
काया
बहुप्पदेसत्तं
अन्वय- छद्दव्वाणि य कालं मोत्तूण एदे जिणसमये अत्थिकाय त्ति हु णिद्दिट्ठा बहुप्पदेसत्तं काया।
अर्थ- (लोक में) (पूर्व कथित) छ द्रव्य (हैं)। काल (द्रव्य) को छोड़कर ये (पाँच द्रव्य) जिनशासन में अस्तिकायवाले कहे गये (हैं)। बहुप्रदेशता काय (कही गई है)।
नियमसार (खण्ड-1)
(45)