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________________ 31. समयावलिभेदेण समयावलिभेदेण दु दुवियप्पं अहव होइ तिवियप्पं । संखेज्जावलिहदसंठाणप्पमाणं दो तु ॥ दु दुवियपं अहव होइ तिवियप्पं दो संखेज्जावलिहद ठाण g [(समय) + (आवलिभेदेण) ] [(समय) - (आवलि) - (भेद ) 3 / 1 ] अव्यय (दुवियप्प) 1/1 वि अव्यय (हो) व 3/1 अक (तिवियप्प ) 1 / 1 वि (42) (तीद) 1/1 वि [ ( संखेज्ज) + (आवलिहद संठाणप्पमाणं ) ] [(संखेज्ज) वि - (आवलि) - संख्यात आवलि से गणित संस्थान प्रमाण किन्तु अन्वय- समयावलिभेदेण दु दुवियप्पं होइ अहव तिवियप्पं तु तीदो संखेज्जावलिहदसंठाणप्पमाणं । अर्थ- समय और आवलि के भेद से तो ( कालद्रव्य की पर्याय) दो प्रकार की होती है अथवा (वर्तमान, भूत और भविष्यत्काल के भेद से) तीन प्रकार की भी होती है) किन्तु भूतकाल संख्यात आवलि से गुणित संस्थान प्रमाण (होता है) । (हद) वि- (संठाण) 1 - ( प्माण) 1 / 1 ] अव्यय 1. विस्तार के लिए देखें: गोम्मटसार जीवकाण्ड | समय और आवलि के भेद से तो दो प्रकार की अथवा होती है तीन प्रकार की भूतकाल नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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