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30. गमणणिमित्तं धम्ममधम्मं ठिदि जीवपोग्गलाणंच।
अवगहणं आयासं जीवादीसव्वदव्वाणं ॥
गमणणिमित्तं धम्ममधम्म
गति में निमित्त
धर्म
[(गमण)-(णिमित्त) 1/1] [(धम्म)+(अधम्म)] धम्म (धम्म) 1/1 अधम्म (अधम्म) 1/1 (ठिदि) 7/1 [(जीव)-(पोग्गल) 6/2]
*ठिदि जीवपोग्गलाणं
अधर्म ठहरने में जीव और पुद्गलद्रव्यों
की
और अवगाहन में आकाश
अव्यय अवगहणं (अवगहण) 2/1+7/1 आयासं
(आयास) 1/1 जीवादीसव्वदव्वाणं [(जीव)+(आदीसव्व
दव्वाणं)] [(जीव)-(आदी-आदि)- (सव्व) सवि-(दव्व) 6/2]
जीव आदि सभी द्रव्यों के
अन्वय- जीवपोग्गलाणं गमणणिमित्तं धम्मं च ठिदि अधम्म जीवादीसव्वदव्वाणं अवगहणं आयासं ।
अर्थ- जीव और पुद्गलद्रव्यों की गति में (जो) निमित्त (है) (वह) धर्म (द्रव्य) और ठहरने में (जो) (निमित्त) (है) (वह) अधर्म (द्रव्य) (है)। जीव आदि सभी द्रव्यों के अवगाहन (स्थान देने) में (जो निमित्त) (है) (वह) आकाश (द्रव्य) (है)।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
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नियमसार (खण्ड-1)
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