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17.
चउदहभेदा
भणिदा
तेरच्छा
चउदहभेदा भणिदा तेरिच्छा सुरगणा चउब्भेदा ।
एदेसिं
वित्थारं लोयविभागेसु णादव्वं ॥
सुरगणा
चभेदा
एदेसिं
वित्थारं
लोयविभागेसु'
णादव्वं
1.
[ ( चउदह) - (भेद) 1 / 2 वि] चौदह भेदवाले
(भण) भूक 1/2
कहे गये
(तेरिच्छ) 1/2
तिर्यंच
(सुरगण) 1 / 2
देवसमूह
(चउब्भेद) 1/2 वि
चार भेदवा
(एद ) 6 / 2 सवि
इनका
(face) 1/1
विस्तार
[(लोय) - (विभाग)
लोक-विभाग
7/2-3/2]
( नामक ग्रंथों) से
( णा) विधि 1 / 1
समझा जाना चाहिए
अन्वय- तेरिच्छा चउदहभेदा सुरगणा चउब्भेदा भणिदा एदेसिं वित्थारं
लोयविभागेसु णादव्वं ।
अर्थ- तिर्यंच चौदह भेदवाले (तथा) देवसमूह चार भेदवाले कहे गये ( हैं ) । इनका विस्तार लोक - विभाग ( नामक ग्रंथों) से समझा जाना चाहिए ।
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । ( हेम - प्राकृत - व्याकरणः 3-135)
नेयमसार (खण्ड-1
-1)
(27)