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18. कत्ता भोत्ता आदा पोग्गलकम्मस्स होदि ववहारा ।
कम्मजभावेणादा कत्ता भोत्ता दु णिच्छयदो ॥
कत्ता भोत्ता आदा पोग्लकम्मस्स होदि ववहारा कम्मजभावेणादा
(कत्तु) 1/1 वि
कर्ता (भोत्तु) 1/1 वि
भोक्ता (आद) 1/1
आत्मा [(पोग्गल)-(कम्म) 6/1] पुद्गल कर्मों का (हो) व 3/1 अक होता है । (ववहार) 5/1
व्यवहारनय से [(कम्मजभावेण)+(आदा)] कम्मजभावेण [(कम्मज) वि- कर्म से उत्पन्न भाव (भाव) 3/1] - आदा (आद) 1/1
आत्मा (कत्तु) 1/1 वि
कर्ता (भोत्तु) 1/1 वि
भोक्ता अव्यय
और (णिच्छय) 5/1
निश्चयनय से
के कारण
कत्ता भोत्ता
णिच्छयदो
अन्वय- ववहारा आदा पोग्गलकम्मस्स कत्ता भोत्ता होदि दु णिच्छयदो कम्मजभावेणादा कत्ता भोत्ता ।
अर्थ- व्यवहारनय (लोक (बाह्य) दृष्टि) से (संसारी) आत्मा पुद्गल कर्मों का कर्ता (और) भोक्ता होता है और निश्चयनय (आत्म (अंतरंग) दृष्टि) से (संसारी) (आत्मा) कर्म से उत्पन्न भाव के कारण (रागद्वेषात्मक भावों का) कर्ता (और) भोक्ता (होता है)।
1.
कारण व्यक्त करनेवाले शब्दों में तृतीया होती है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 36) छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'णिच्छयादो' का 'णिच्छयदो' किया गया है। संपादक द्वारा अनूदित
2. नोटः
(28)
नियमसार (खण्ड-1)