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________________ 15. णरणारयतिरियसुरा पज्जाया ते विहावमिदि भणिदा। कम्मोपाधिविवज्जियपज्जाया ते सहावमिदि भणिदा॥ णरणारयतिरियसुरा [(णर)-(णारय)-(तिरिय)- मनुष्य, नारकी, तिर्यंच (सुर) 1/2] और देव पज्जाया (पज्जाय) 1/2 पर्यायें (त) 1/2 सवि वे विहावमिदि [(विहावं)+ (इदि)] विहावं' (विहाव) 2/1-1/2 विभाव इदि (अ) = पादपूरक भणिदा (भण) भूकृ 1/2 कही गई कम्मोपाधिविवज्जिय-[(कम्म)+ (उपाधिविवज्जियपज्जाया पज्जाया)] [(कम्म)-(उपाधि)- कर्मों के संयोग (विवज्जिय) वि से रहित पर्यायें (पज्जाय) 1/2] (त) 1/2 सवि सहावमिदि [(सहावं)+ (इदि)] सहावं' (सहाव) 2/1-1/2 स्वभाव इदि (अ) = पादपूरक (भण) भूकृ 1/2 कही गई भणिदा अन्वय- णरणारयतिरियसुरा पज्जाया ते विहावमिदि भणिदा कम्मोपाधिविवज्जियपज्जाया ते सहावमिदि भणिदा। अर्थ- (जो) मनुष्य, नारकी, तिर्यंच और देव पर्यायें (हैं) वे विभाव (पर्यायें) कही गई हैं)। कर्मों के संयोग से रहित (जो) पर्यायें (हैं) वे स्वभाव (पर्यायें) कही गई (हैं)। 1. प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है । (हेम-प्राकृत-व्याकरणः वृत्ति 3-137) नियमसार (खण्ड-1) (25)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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