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14. चक्खु अचक्खू ओही तिण्णि वि भणिदं विहावदिट्टित्ति ।
पज्जाओ दुवियप्पो सपरावेक्खो य णिरवेक्खो ॥
चक्षु
*चक्खु अचक्खू ओही
अचक्षु
अवधि तीनों
तिण्णि
कहे गये
भणिदं विहावदिहि त्ति
(चक्खु) 1/1 (अचक्खु) 1/1 (ओहि) 1/1 (ति) 1/2 वि अव्यय (भण) भूक 2/1-1/2 [(विहावदिट्ठी)+(इति)] [(विहाव)-(दिट्ठि) 1/2] इति (अ) = (पज्जाअ) 1/1 (दुवियप्प) 1/1 वि (स-परावेक्ख) 1/1 वि अव्यय (णिरवेक्ख) 1/1 वि
पज्जाओ दुवियप्पो सपरावेक्खो
विभावदर्शन समाप्तिसूचक पर्याय दो प्रकार की पर की अपेक्षा-सहित.
और अपेक्षा-रहित ।
.
णिरवेक्खो
अन्वय- चक्नु अचक्खू ओही तिण्णि वि विहावदिट्टि त्ति भणिदं पज्जाओ दुवियप्पो सपरावेक्खो य णिरवेक्खो ।
___ अर्थ- चक्षु, अचक्षु (और) अवधि (ये) तीनों ही विभावदर्शन कहे गये हैं)। पर्याय दो प्रकार की (है): पर की अपेक्षा-सहित और (पर की) अपेक्षा-रहित ।
प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः वृत्ति 3-137) प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)
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नियमसार (खण्ड-1)