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________________ 13. तह दंसणउवओगो ससहावेदरवियप्पदो दुविहो। केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावमिदि भणिदं॥ तह अव्यय उसी प्रकार दसणउवओगो [(दंसण)-(उवओग) 1/1] दर्शन-उपयोग ससहावेदरवियप्पदो [(ससहाव) + (इदरवियप्पदो)] [(स-सहाव) वि-(इदर) वि- स्वभावसहित और (वियप्प) 5/1] विकल्पपूर्वक विरोधी पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय (विभावसहित) दुविहो (दुविह) 1/1 वि दो प्रकार का केवलमिंदियरहियं [(केवलं)+ (इंदियरहियं)] केवलं (केवल) 1/1 केवलदर्शन इंदियरहियं [(इंदिय)-(रहिय) इन्द्रियों से रहित 1/1 वि] असहायं (असहाय) 1/1 वि असहाय (त) 1/1 सवि वह सहावमिदि [(सहावं)+ (इदि)] सहावं (सहाव) 2/1-7/1 स्वभाव में इदि (अ) = इसलिए इसलिए भणिदं (भण) भूकृ 1/1 कहा गया अन्वय-तह दंसणउवओगो ससहावेदरवियप्पदो दुविहो केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावमिदि भणिदं । अर्थ- उसी प्रकार दर्शन-उपयोग स्वभावसहित और विकल्पपूर्वक विरोधी (विभावसहित) दो प्रकार का (होता है) (उनमें) केवलदर्शन इन्द्रियों से रहित (और) असहाय (है) इसलिए वह (केवलदर्शन) स्वभाव में (विद्यमान) कहा गया (है)। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) नियमसार (खण्ड-1) (23)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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