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अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं । ववगयअसेसदोसो सयलगुणप्पा हवे अत्तो॥
हवेइ
अत्तागमतच्चाणं [(अत्त)+(आगमतच्चाणं)]
[(अत्त) वि-(आगम)- आप्त, आगम और (तच्च) 6/2]
तत्त्वों के सद्दहणादो (सद्दहण) 5/1
श्रद्धान के कारण (हव) व 3/1 अक होता है सम्मत्तं
(सम्मत्त) 1/1 . सम्यक्त्व ववगयअसेसदोसो [(ववगय) भूकृ अनि- समस्त दोष नष्ट कर
(असेस) वि-(दोस) 1/1] दिये गये सयलगुणप्पा
[(सयल) वि-(गुणप्प) समस्त गुणों से युक्त 1/1वि (हव) व 3/1 अक
होता है अत्तो
(अत्त) 1/1 वि
आप्त
अन्वय- अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो सम्मत्तं हवेइ ववगयअसेसदोसो सयलगुणप्पा अत्तो हवे।
___ अर्थ- आप्त, आगम और तत्त्वों के श्रद्धान के कारण सम्यक्त्व होता है। (जिनके द्वारा) समस्त दोष नष्ट कर दिये गये हैं) (और) (जो) समस्त गुणों से युक्त (है) (वह) आप्त होता है। 1. कारण व्यक्त करनेवाले शब्दों में तृतीया या पंचमी होती है।
(प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 42) समास के अंत में 'अप्प' शब्द का प्रयोग होने से इसका अर्थ ‘से युक्त' होता है।
नियमसार (खण्ड-1)
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