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________________ 4. णियमं मोक्खउवाओ तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं। एदेसिं तिण्हं पि य पत्तेयपरूवणा होइ ॥ फल णियमं मोक्खउवाओ तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं एदेसिं तिण्हं पि (णियम) 1/1 नियम [(मोक्ख)-(उवाअ) 1/1] मोक्ष का उपाय (मोक्व)-(वाय 1111 (त) 6/1 सवि उसका (फल) 1/1 (हव) व 3/1 अक होता है [(परम) वि-(णिव्वाण) 1/1] परम निर्वाण (एद) 4/2 सवि [(तिण्ह)+(अपि)] तिण्हं (ति) 4/2 वि तीनों के लिए अपि (अ) = इसके अतिरिक्त इसके अतिरिक्त अव्यय [(पत्तेय) वि-(परूवणा) 1/1] प्रत्येक का प्रतिपादन (हो) व 3/1 अक विद्यमान है और पत्तेयपरूवणा अन्वय-णियमं मोक्खउवाओतस्स फलं परमणिव्वाणं हवदि य एदेसिं तिण्हं पि पत्तेयपरूवणा होइ । __अर्थ- (पूर्व कथित) (रत्नत्रय स्वरूप) (वह) नियम (एक साथ) मोक्ष का उपाय (है) उसका फल परम निर्वाण होता है और इसके अतिरिक्त इन तीनों के लिए प्रत्येक का (भिन्न-भिन्न) प्रतिपादन विद्यमान है। 1. 2. प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 7 (i) अभिनव प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 154 (14) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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