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________________ 62. जीवो चेव हि एदे सव्वे भाव त्ति मण्णसे जदि हि। जीवस्साजीवस्स य णस्थि विसेसो दु दे कोई॥ जीवो जीव मण्णसे जदि हि जीवस्साजीवस्स (जीव) 1/1 अव्यय अव्यय निस्सन्देह (एद) 1/2 सवि (सव्व) 1/2 सवि सब [(भावा)+ (इति)] भावा (भाव) 1/2 अवस्थाएँ इति (अ) = इस प्रकार (मण्ण) व 2/1 सक मानता है अव्यय यदि अव्यय निश्चय ही [(जीवस्स)+ (अजीवस्स)] जीवस्स (जीव) 6/1-7/1 जीव में अजीवस्स (अजीव)6/1-7/1 अजीव में अव्यय अव्यय नहीं है (विसेस) 1/1 अव्यय अव्यय पादपूरक अव्यय कोई णत्थि विसेसो भेद orto कोई अन्वय- जदि मण्णसे एदे सव्वे भाव त्ति चेव जीवो हि दु दे हि जीवस्साजीवस्स कोई विसेसो य णत्थि। अर्थ- यदि (त) इस प्रकार मानता है (कि) (जीव की) ये सब अवस्थाएँ निस्सन्देह जीव ही (हैं) तो (तेरे लिए) निश्चय ही जीव और अजीव में कोई भेद ही नहीं है/रहेगा। 1. 2. प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 7 (iii) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु कोई' के स्थान पर कोई' किया गया है। 3. समयसार (खण्ड-1) (13)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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