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30. णयरम्मि वण्णिदे जह ण वि रण्णो वण्णणा कदा होदि।
देहगुणे थुव्वंते ण केवलिगुणा थुदा होंति॥
णयरम्मि वण्णिदे
जह
रण्णो
वण्णणा
कदा होदि
(णयर) 7/1
नगर का (वण्णिद) भूक 7/1 अनि वर्णन करने पर अव्यय
जैसे अव्यय
नहीं अव्यय (राय) 6/1
राजा का (वण्णण) 1/2
वर्णन (कद) भूकृ 1/2 अनि किया हुआ (हो) व 3/1 अक होता है [(देह)-(गुण) 7/1] देह के गुणों की (थुव्वंते) वकृ कर्म 7/1 अनि स्तुति करने पर अव्यय [(केवलि)-(गुण) 1/2] केवली के गुण (थुद) भूकृ 1/2 अनि स्तुति किये हुए (हो) व 3/2 अक होते हैं
देहगणे
थुव्वंते।
नहीं
केवलिगुणा
थुदा
होति
अन्वय- जह णयरम्मि वण्णिदे वि रण्णो वण्णणा कदा ण होदि देहगुणे थुव्वंते केवलिगुणा थुदा ण होति ।
अर्थ- जैसे (किसी के द्वारा) नगर का वर्णन करने पर भी राजा का वर्णन किया हुआ नहीं होता है, (वैसे ही) देह के गुणों की स्तुति करने पर (भी) केवली के गुण स्तुति किये हुए नहीं होते हैं।
जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी का प्रयोग होता है। हो चुके कार्य के वाक्य में सकर्मक क्रिया का प्रयोग होने पर वाक्य कर्मवाच्य में होगा। अतः कर्मवाच्य में कर्ता में तृतीया और कर्म और कृदन्त में सप्तमी होती है। यहाँ
कर्ता (केण) लुप्त है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 49-50) (40)
समयसार (खण्ड-1)