SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 28. इणमण्णं जीवादो देहं पोग्गलमयं थुणित्तु मुणी। मण्णदि हु संधुदो वंदिदो मए केवली भयवं। इणमण्णं भिन्न जीव से जीवादो देह पोग्गलमयं थुणित्तु पुद्गलमय स्तुति करके मुणी [(इणं)+(अण्णं)] इणं (इम) 2/1 सवि अण्णं (अण्ण) 2/1 वि (जीव) 5/1 (देह) 2/1 (पोग्लमय) 2/1 वि (थुण) संकृ (मुणि) 1/1 (मण्ण) व 3/1 सक अव्यय (संथुद) भूकृ 1/1 अनि (वंद) भूकृ 1/1 (अम्ह) 3/1 स (केवलि) 1/1 वि (भयव) 1/1 मुनि मण्णदि संधुदो मानता है ऐसा स्तुति किए गए वंदना किए गए मेरे द्वारा केवली वंदिदो मए केवली भयवं भगवान अन्वय- जीवादो इणमण्णं पोग्गलमयं देहं थुणित्तु मुणी हु मण्णदि मए केवली भयवं संयुदो वंदिदो। अर्थ- जीव से भिन्न इस पुद्गलमय देह की स्तुति करके मुनि ऐसा मानता है (कि) मेरे द्वारा केवली भगवान स्तुति किए गए (व) वंदना किए गए (हैं)। (38) समयसार (खण्ड-1)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy