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26. जदि जीवो ण सरीरं तित्थयरायरियसंथुदी चेव।
सव्वा वि हवदि मिच्छा तेण दु आदा हवदि देहो।
जदि
जीव नहीं है शरीर . तीर्थंकरों और आचार्यों की स्तुति
सव्वा
अव्यय जीवो
(जीव) 1/1
अव्यय सरीरं
(सरीर) 1/1 तित्थयरायरियसंथुदी [(तित्थयर)-(आयरिय)
(संथुदि) 1/1] अव्यय (सव्वा) 1/1 सवि अव्यय
(हव) व 3/1 अक मिच्छा
अव्यय तेण
अव्यय
अव्यय आदा
(आद) 1/1 हवदि
(हव) व 3/1 अक (देह) 1/1
हवदि
मिथ्या इसलिए
दु
आत्मा
है
देहो
अन्वय-जदि जीवो ण सरीरं दु तित्थयरायरियसंथुदी सव्वा वि मिच्छा हवदि तेण देहो चेव आदा हवदि।
. अर्थ- यदि (तुम कहते हो कि) जीव शरीर नहीं है तो तीर्थंकरों और आचार्यों की (शरीर रूप से की गई) स्तुति सब ही मिथ्या है (मिथ्या हो जावेगी)। इसलिए (मान लेना चाहिए कि) देह ही आत्मा है। (इस प्रकार मानने से तीर्थंकरों और आचार्यों की देहरूप में की गई स्तुति मिथ्या होने से बच जायेगी)।
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समयसार (खण्ड-1)