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________________ 4. सुदपरिचिदाणुभूदा सव्वस्स वि कामभोगबंधकहा। एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलहो विहत्तस्स। सव्वस्स ही सुदपरिचिदाणुभूदा [(सुदपरिचिदा)+(अणुभूदा)] सुदा' (सुद) भूकृ 1/1 अनि सुनी हुई परिचिदा (परिचिद) जानी हुई भूकृ 1/1 अनि अणुभूदा(अणुभूद)भूकृ 1/1अनि अनुभव की हुई (सव्व) 6/1-3/1 सवि सबके द्वारा अव्यय कामभोगबंधकहा [(काम)-(भोग)-(बंध) (कहा) 1/1] . निरूपण की कथा एयत्तस्सुवलंभो [(एयत्तस्स)+ (उवलंभो)] एयत्तस्स (एयत्त) 6/1 एकत्व की उवलंभो (उवलंभ) 1/1 प्राप्ति णवरि केवल अव्यय नहीं सुलहो (सुलह) 1/1 वि सुलभ विहत्तस्स (विहत्त) भूक 6/1 अनि भिन्न की गई के अव्यय ण अन्वय- सव्वस्स वि कामभोगबंधकहा सुदपरिचिदाणुभूदा णवरि विहत्तस्स एयत्तस्सुवलंभो सुलहो ण। ___ अर्थ- सबके (मनुष्यों के) द्वारा ही काम-भोग (इन्द्रिय-विषय) के निरूपण की कथा सुनी हुई (है), जानी हुई (है) तथा अनुभव की हुई (है), केवल (पुद्गल से) भिन्न की गई (अंतरंग में प्रकाशमान) (आत्मा) के एकत्व (दर्शनज्ञान-चारित्र में स्थित आत्मा) की प्राप्ति सुलभ नहीं (है)। समास में अधिकतर प्रथम शब्द का अंतिम स्वर ह्रस्व हो तो दीर्घ हो जाता है और दीर्घ हो तो ह्रस्व हो जाता है। (प्राकृतव्याकरणः पृष्ठ 21) 2. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत-व्याकरणः 3-134) (14) समयसार (खण्ड-1)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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