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________________ 3. एयत्तणिच्छयगदो समओ सव्वत्थ सुन्दरो लोए। बंधकहा एयत्ते तेण विसंवादिणी होदि। एयत्तणिच्छयगदो समओ सव्वत्थ सुन्दरो लोए बंधकहा एयत्ते [(एयत्त)-(णिच्छय)(गद) भूक 1/1 अनि] (समअ) 1/1 अव्यय (सुन्दर) 1/1 वि (लोअ) 7/1 [(बंध)-(कहा) 1/1] (एयत्त) 7/1 एकत्व का उद्देश्य प्राप्त कर लिया गया आत्मा सर्वत्र प्रशंसनीय लोक में बंधन की कथा एकत्व में इसलिए विसंवादिनि होती है तेण अव्यय विसंवादिणी होदि (विसंवादिणि) 1/1 वि (हो) व 3/1 अक अन्वय- एयत्तणिच्छयगदो समओ लोए सव्वत्थ सुन्दरो तेण एयत्ते बंधकहा विसंवादिणी होदि। अर्थ- (जिसके द्वारा दर्शन-ज्ञान-चारित्र के) एकत्व का उद्देश्य प्राप्त कर लिया गया (है) (वह) आत्मा लोक में सर्वत्र प्रशंसनीय (होता है) (यह) (स्वसमय) (है)। इसलिए एकत्व (की स्थिति) में (न ठहरकर) (जीव की पररूप बुद्गल के साथ) बंधन की कथा विसंवादिनि (द्वन्द्व-जनक/अहं-जनक/दुखजनक) होती है (यह) (परसमय) (है)। अथवा ____ अर्थ- (दर्शन-ज्ञान-चारित्र के) एकत्व की दृढ़ता को प्राप्त हुआ आत्मा पर्वत्र प्रशंसनीय (होता )। इसलिए (पूर्व कथित) एकत्व में (पर के साथ) बंधन की कथा विसंवादिनि (द्वन्द्व-जनक/अहं-जनक/दुख-जनक) होती है। गोटः संपादक द्वारा अनूदित . समयसार (खण्ड-1) (13)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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