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2.
जीवो
चरित्तदंसणणाणट्ठिदो
तं
हि
ससमयं
जाण
जीवो चरित्तदंसणणाणट्ठिदो तं हि ससमयं जाण । पोग्गलकम्मपदेसट्टिदं च तं जाण परसमयं ।।
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(स-समय) 2/1
(जाण) विधि 2 / 1 सक
पोग्गलकम्मपदेसट्ठिदं [(पोग्गल ) - (कम्म) - (पदेस)
(हिद) भूक 2 / 1 अनि ]
अव्यय
(त) 2 / 1 सवि
(जाण) विधि 2 / 1 सक
[ ( पर) वि - (समय) 2 / 1]
तं
(जीव) 1 / 1
जीव
[(चरित्त) - (दंसण) - (णाण ) - दर्शन - ज्ञान - चारित्र
(हिद) भूक 1 / 1 अनि ]
में स्थित
(त) 2 / 1 सवि
उसको
अव्यय
जाण
परसमयं
स्वसमय
जानो
- पुद्गल कर्म - समूह में
स्थित
किन्तु
उसको
जानो
परसमय
अन्वय- जीवो चरित्तदंसणणाणट्ठिदो हि तं ससमयं जाण च पोग्गलकम्मपदेसट्ठिदं तं परसमयं जाण ।
अर्थ - (जो ) जीव (बाह्य उलझनों से छूटकर ) ( अपने अंतरंग स्वरूप) दर्शन - ज्ञान-चारित्र (के एकत्व) में ही स्थित (होता है) उसको (तुम) स्वसमय अर्थात् स्व में ठहरनेवाला आत्मा जानो, किन्तु (बाह्य उलझनों में लिप्त ) ( रागद्वेष भावों में एकरूप हुए) पुद्गल कर्म-समूह में स्थित उस (जीव) को तुम परसमय अर्थात् पर में ठहरनेवाला आत्मा जानो ।
(12)
-1)
समयसार (खण्ड