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नरिंदु (2/1) धण/धणा/धणु (2/1) मग्गइ/आदि (अपादान 5/1 के स्थान पर) (v) वह अग्नि से धान पकाता है - सो (1/1) अग्गि/अग्गी (2/1) धण्ण/धण्णा/धण्णु (2/1) पचइ/आदि (करण 3/1के स्थान पर) (vi) वह पुत्र को गाँव में ले जाता है - सो (1/1) पुत्त/पुत्ता/पुत्तु (21) गाम/गामा/गामु (2/1) वहइ/आदि अथवा णीणइ/ आदि (अधिकरण 7/1के स्थान पर)
पुच्छ (पूछना), रुंध (रोकना), मह (मथना), मुस (चोरी करना) आदि द्विकर्मक क्रियाओं का प्रयोग भी कर लेना चाहिए। ... उपर्युक्त क्रियाओं के पर्यायवाची अर्थ में भी प्रधान और गौण कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।
. इनके कर्मवाच्य बनाने में गौण कर्म में प्रथमा हो जाती है और प्रधान कर्म में द्वितीया ही रहती है। किन्तु गत्यार्थक धातु के योग में 'वह' के प्रधान कर्म को प्रथमा में रखा जाता है और गौण कर्म द्वितीया में रहता है।
(i) सो (1/1)मित्त/मित्ता/मित्तु (2/1) पह/पहा/पहु (2/1) पुच्छइ/आदि (कर्तृवाच्य) तेण/तेणं/तें (3/1) मित्त/मित्ता/मित्तु/ मित्तो (1/1) पह/पहा/पहु (2/1) पुच्छिज्जइ/आदि (कर्मवाच्य) (ii) सो (1/1) गावि/गावी (2/1)दुद्ध/दुद्धा/दुद्ध (2/1) दुहइ/ आदि (कर्तृवाच्य) तेण/तेणं/तें (3/1)गावि/गावी (1/1) दुद्ध/ दुद्धा/दुद्ध (2/1) दुहिज्जइ/आदि (कर्मवाच्य) (iii) सो (1/1) पुत्त/पुत्ता/पुत्तु (2/1) गाम/गामा/गामु
अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (35)
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