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द्वितीया विभक्ति : कर्मकारक जिस व्यक्ति या वस्तु पर किसी क्रिया का प्रभाव पड़ता है, वह उस क्रिया का कर्म कहलाता है, जैसे - माया/माय (1/1) कहा/कह (2/1) सुणइ/आदि (माता कथा को सुनती है।) यहाँ सुनना क्रिया का प्रभाव कथा पर समाप्त होता है। इसलिए 'कहा' कर्मकारक हुआ, उसमें द्वितीया विभक्ति रखी गई है। यहाँ यह समझना चाहिए कि कर्मवाच्य को छोड़कर सभी जगह कर्म द्वितीया विभक्ति में रखा जाता है, जैसे बताया गया है कि . कर्मवाच्य में कर्म प्रथमा विभक्ति में रखा जाता है, जैसे- मायाए। मायए (3/1) कहा/कह (1/1) सुणिज्जइ/सुणिअइ/ आदि द्विकर्मक क्रियाओं के योग में मुख्य कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है और गौण कर्म में अपादान, अधिकरण, सम्प्रदान, सम्बन्ध आदि विभक्तियों के होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है। (i) वह गाय से दूध दुहता है - सो (1/1) गावी/गावि (2/1) दुद्ध/दुद्धा/दुद्ध (2/1) दुहइ/आदि (अपादान 5/1 की विभक्ति के स्थान पर) (ii) वह वृक्ष के फलों को इकट्ठा करता है - सो (1/1) रुक्ख/ रुक्खा /रुक्खु (2/1) फल/फला/फलइं/फलाइं (2/2) चुणइ/ आदि (सम्बन्ध 6/1 की विभक्ति के स्थान पर) (iii) गुरु शिष्य के लिए धर्म का उपदेश देता है - गुरु/गुरू (1/1) सिस्स/सिस्सा/सिस्सु (2/1)धम्म/धम्मा/धम्मु (2/1) उवदिसइ/आदि (सम्प्रदान 4/1 के स्थान पर) (iv) वह राजा से धन माँगता है - सो (1/1) नरिद/नरिदा/
अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (34)
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