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शासन सम्राट : जीवन परिचय. ७८ । श्रावक नोकर चाकर मिलकर बीस हजार आदमिया का काफिला एक स्थान से दूसरे स्थान डेरा डालते हुए आगे बढते थे । जिस राज्य में से संघ गुजरता था उस-राज्य के राजा सामने से स्वागत करने आते थे । गोंडल राज्य में कोई भी धर्म के यात्रा संघ' पर कर था । अतः संघ ने गोंडल का समावेश नहीं किया था । परन्तु राज्य ने यात्रा कर माफ करके संघ को गोंडल पधारने का विशेष अनुरोध किया । राज्य की इच्छा को मान देकर संघ ने गोंडल गांव में डेरा डाला । इस संघ में विविध प्रकार की बडी बडी (उछामणी) रकम बोली गई थी । जिसमें बड़े बड़े श्रेष्ठीयों ने उसका अच्छा लाभ लिया था । उन दिनो संघपति का इस संघ के कारण आठ लाख रुपये का खर्च हुआ था । इसी से कल्पना की जा सकती है कि यह संघ कितना यादगार रहा होगा ।
महाराजश्री कदंबगिरि से महुवा पधारे उस समय अहमदाबाद के एक दंपति ने महाराज श्री से दीक्षा लेने का प्रस्ताव रखा था । इसीलिए महाराज महुवा से विहार कर अहमदाबाद पधारे और दीक्षा प्रदान की गई । महाराजश्री के ये शिष्य ही रत्नप्रभविजय । संसारी अवस्था में वे डॉक्टर थे । उनका नाम त्रिकमलाल अमथालाल शाह था । उनके बडेभाई ने महाराजश्री से दीक्षा ली थी और उनका नाम मुनि सुभद्रविजय रखा गया । मुनि सुभद्रविजयजी का छोटी उम्र में ही काल धर्म हो गया । इससे डॉक्टर के हृदय में वैराग्य प्रगट हुआ अपनी अच्छी कमाई छोडकर उन्होंने और उनकी पत्नी ने महाराजश्री