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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
के बीच तीर्थ के रक्षण के लिए करार हुआ था । तद्नुसार प्रतिवर्ष पन्द्रह हजार रूपये पेढी को पालीताणा के ठाकुर को देना पड़ता था । अंग्रेज पोलिटिकल एजन्ट कर्नल वोट्स ने इस संदर्भ में मध्यस्थी करके पालीताणा के ठाकुर को बड़ी रकम दिलवा दी थी । व्यक्तिगत यात्री को कर न भरना पडे और तकलीफ न हो इसलिए पेढ़ी ने यह जिम्मेदारी स्वीकार की थी । यह करार चालीस वर्ष के लिए किया गया था । करार की अवधि पूर्ण होने पर तीर्थरक्षा की रकम के बारे में दोनों पक्ष पुन:मंत्रणा करके नवीन निर्णय ले सके ऐसी कलम थी । इस करार की अवधि वि.सं.१९८२में पूर्ण होती थी । अपने राज्य में तीर्थ स्थल हो तो उस राज्य के राजवी को उसमें से अच्छी कमाई करने का लोभ हो ऐसा वह समय था । पालीताणा के ठाकुर ने घोषणा की कि ता. ३१ मार्च १९२६ के दिन करार पूर्ण हुए है अतः १ ली अप्रैल १९२६ के दिन से राज्य की ओर से 'मुंडकावेरा' लिया जायगा । प्रत्येक यात्री स्वयं यह कर भरने के बाद यात्रा कर सकता है । मुंडकावेरा से राज्य को अधिक आमदनी तो होगी किन्तु इससे यात्रिकों की परेशानी बढ़ जाएगी । ठाकुर निर्धारित राशि पेढी से लेने की अपेक्षा 'मुंडकावेरा' वसुल करने की इच्छा रखता था क्योंकि आवक अधिक होने की संभावना थी । ऐसे अन्यायी 'मुंडकावेरा' का विरोध करना ही चाहिए, ऐसा महाराजश्री को लगा उन दिनों महाराजश्री के वचन पालने के लिए सभी संघ तत्पर थे । राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन चल रहा था । महाराजश्री