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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
को तीर्थयात्रा के संदर्भ में असहकार विचार स्फूरित हुआ । अन्य कोई मार्ग न सूझने पर महाराजश्री ने घोषित किया कि जब तक यह अन्यायी कानून दूर न हो तब तक किसी को सिद्धाचल की यात्रा नहीं करनी है । जिस किसी को सिद्धाचलजी क्षेत्र स्पर्शना की भावना हो वे कदम्बगिरि, रोहिसाला इत्यादि तीर्थों की यात्रा करें कि जो तीर्थ शेनुंजय पर्वत के भाग स्वरूप है और पालीताणा के राज्य की सीमा के बाहर है । ता १ अप्रैल १९२६ के दिन 'मुंडकावेरा' एकत्रित करने के लिए ठाकुर ने कार्यालय खोले और टेकरी (पहाडी) के शिखर तक जगह जगह चोकीदार बैठा दिए थे । किन्तू शिहोर के स्टेशन से जैन स्वयंसेवक यात्रिकों को इस असहकार के संदर्भ में सहकार देने के लिए समझा रहे थे । परिणामस्वरूप एक भी यात्रिक पालीताणा मे होकर गिरिराज पर न चढा था । गांव और पहाडी सुनसान हो गए । पालीताणा में से तमाम साधु-साध्वी भी विहार करके राज्य के बाहर निकल गए थे । इसतरह यात्रिकों को असहकार से राज्य को पेढ़ी द्वारा जो वार्षिक पन्द्रह हजार रुपये की आवक होती थी वह भी बंद हो गई । देखते देखते एक वर्ष बीत गया किन्तु दोनों पक्ष में से कोई न झुका । महाराजश्री का वर्चस्व जैन समाज पर कितना था इस घटना से देखा जा सकता है । दूसरा वर्ष भी इसी तरह पूर्ण हो गया । अब ठाकुर कमजोर पड़े । उन्होंने देखा कि जैन समाज किसी भी तरह से झुकता नहीं है । इतना ही नहीं उन्होंने यह भी जाना कि जैन संघ यह केस