________________
शासन सम्राट : जीवन परिचय.
जब आ सकते हैं । कलेक्टर ने लगभग तीन बार महाराजश्री को इस तरह अपने पास बुलाने का प्रयत्न किया किन्तु अंततः निष्फल होकर महाराजश्री के पास आने के लिए तैयार हुए । कलेक्टर ने पूछवाया कि वह कुर्सी पर बैठे तो महाराजश्री को कोई ऐतराज तो नहीं ? महाराजश्री ने कहलवाया कि - जैन जैनेतर कोम के बडे बडे आगेवान एवं विद्वान आते हैं किन्तु वे औपचारिकता की दृष्टि से और जैन साधुओं का विनय संभालने के लिए नीचे ही बैठते हैं । कलेक्टर ने नीचे बैठना स्वीकार किया । वे जब मिलने आए तब सिर पर से हेट तो उतारी किन्तु पांव के जूते उन्हें निकालने की इच्छा न थी । महाराजश्री ने उनके समक्ष ऐसा बुद्धिगम्य तर्क प्रस्तुत किया कि फौरन कलेक्टर ने पांव के जूते निकालना स्वीकार कर लिया । जूते निकालकर वे महाराजश्री के पास आए और सामने नीचे बैठ गए
कलेक्टर ने महाराजश्री से राष्ट्रीय आंदोलन की चर्चा की किन्तु महाराजश्री ने स्पष्ट शब्दों में समझा दिया कि जैन साधु किसी के विवाद में नहीं पड़ते । महाराजश्री के साथ कलेक्टर ने तत्कालीन परिस्थिति के संदर्भ में कई विषयों की स्पष्टता की और महाराजश्री के तार्किक उत्तरों से वे बहुत प्रभावित हुए । महाराजश्री ने उनके समक्ष जैन तीर्थों के रक्षण की सरकार की जिम्मेदारी है, इस बात पर जोर दिया । क्योकिं जैनों की ओर से सरकार को कर के रूप में बहुत बड़ी रकम मिलती है । कलेक्टर ने इस बात का स्वीकार