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________________ शासन सम्राट: जीवन परिचय. इन देव - देवियों की महिमा इतनी बढ़ गई थी कि जैनों के अतिरिक्त आसपास के स्थानिक जैनेतर लोग विशेषतः जाट जाति के लोग उनकी बाधा या मनौती रखते थे । दर्शन करने वालों में जैनेतर वर्ग भी बहुत अधिक था । समय बीतते छोटे बच्चों के बाल उतरवाने के (मुंडन) लिए भी वे कापरडाजी जिनमंदिर में आते थे । जैनों की बस्ती जब घटती गई और दर्शनार्थियों में मुख्य जाट जाति के लोग ही रह गए तब इस तीर्थ की आशातना इतनी बढ़ गई कि चामुंडा माता की दहलीज के सामने बकरे का वध भी होने लगा । पशुबलि की यहाँ परंपरा चलने लगी। दूसरी और मंदिरके निर्वाहके लिए कोई व्यवस्था न होने से मंदिर जर्जरित हो गया । महाराजश्री जब कापरडाजी के जिनमंदिर में पधारे तब उसकी हालत देखकर उनका हृदय द्रवित हो गया । उन्होंने उस तीर्थ का उद्धार करने का संकल्प किया । किन्तु इसके लिए हिम्मत और सूझबूझ की आवश्यकता थी । जीर्णोद्धार का कार्य क्रमानुसार करने की आवश्यकता थी । ५६ महाराज श्री ने सबसे पहले तो तीर्थ का अधिकार जैनों के हाथ में आए ऐसी कानूनी व्यवस्था करवाई । उसके बाद उन्होंने गढ़ के अंदर की साफ- सूफी करवाई । महाराजश्री को लगा कि मंदिर में स्वयंभू पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिदिन नियमित पूजा होनी चाहिए । जाट लोगों के बीच आकर कोई भी हिम्मतपूर्वक रहे और प्रतिदिन जिन प्रतिमा की पूजा करे ऐसे एक व्यक्ति के रूप में
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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