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शासन सम्राट : जीवन परिचय..
पास के बिलाडा नामक गांव में पधारे थे । वहां के आगेवान श्रावक श्री पन्नालालजी शराफ को भावना हुई कि पू. महाराजश्री यदि कापरडा तीर्थ का उद्धार कार्य हाथ में लें तो वे अवश्य अच्छी तरह पूर्ण हो सकता है । किन्तु कापरडाजी तीर्थ के उद्धार का कार्य सरल न था । इस प्राचीन ऐतिहासिक तीर्थ में वि.सं. १६७८ में जिनमंदिर में मूलनायक की प्रतिष्ठा हुई थी उस समय जोधपुर राज्य के सुबेदार श्री भाणाजी भंडारी थे । राज्य की ओर से मुसीबत आ पड़ने से एक यतिजी ने उनकी सहायता की थी। उनके आशिर्वाद से उन्होंने कापरडा में चार मंजिलवाला चौमुखी जिनमंदिर बनवाया था । इसमें गांव के बाहर की जमीन में से निकले श्री स्वयंभू पार्श्वनाथ भगवान का जिनबिंब सहित चार जिनबिंब की प्रतिष्ठा महोत्सवपूर्वक की गई थी ।
यह कापरडाजी तीर्थ उस समय में एक प्रख्यात तीर्थ बन गया था ।
लगभग ढाई तीन सदी से अधिक समय इस तीर्थ की महिमा बहुत रही । किन्तु २०वीं सदी के प्रारंभ में राजद्वारी परिस्थिति
और कुदरती आपत्तियों के कारण कापरडाजी की वैभव समृद्धि घटती गई और जैन परिवार आजीविका के लिए अन्यत्र स्थलांतर करते गए। इसी तरह कापरडाजी में जैनों की कोई विशेष बस्ती न रही ।
कापरडाजी के इस जिनमंदिर में खतरगच्छ के श्रावकों ने चामुंडा माताजी तथा भैरवनाथ जी देव-देवी की दो देहरी बनवाई ।