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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
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राजस्थान अर्थात हस्तप्रतों का खजाना । बहुत से यति पैसे की आवश्यकता पड़ने पर हस्तप्रतें बेचने निकलते थे । कुछ जातियों के अज्ञानी लोग हस्तप्रतों को भी तौलकर बेचते थे । किन्तु महाराजश्री हस्तप्रतों को तौलकर लेने से इन्कार करते थे । सरस्वती देवी को तौलकर नहीं ले सकते, ऐसा वे समझाते और श्लोकों की गिनती और पृष्ठसंख्या के आधार पर हस्तप्रत लेने का प्रस्ताव रखते थे । ऐसी कई दुर्लभ पोथियाँ महारापश्री श्रावकों को कहकर खरीदवा लेते जिससे वे नष्ट न हो जाय ।
फलोधी से महाराज श्री बीकानेर पधारे । यहां, तपगच्छ, खतरगच्छ, कमलागच्छ, वगेरे के मतभेद थे किन्तु महाराजश्री ने उदार समन्वय दृष्टि रखी थी । बीकानेर में महाराजश्री को मिलने जयदयाल नामक एक विद्वान हिन्दू पंडित आए थे । पंडित जयदयाल को जैन धर्म में रूचि थी । उन्होंने कुछ अभ्यास भी किया था । उन्हें सिद्धचक्र के नवपद के नवरंग क्यों है यह जानने की जिज्ञासा थी । महाराजश्री ने उसके विषय में समझ दी, इससे उन्हें बहुत संतोष हुआ । इन्ही पंडित जयदयाल शर्मा ने 'नवकारमंत्र' के संबंध में कुछ प्राचीन संस्कृत प्राकृत कृतियों का हिन्दी में अर्थ विस्तार कर मूल्यवान ग्रंथ प्रकाशित किया था । कापरडाजी का तीर्थोद्धार : एक चुनोती :
महाराजश्री सं. १९७३का चातुर्मास फलोधी में पूर्णकर बीकानेर, नागोर, मेडता, जेतारण इत्यादि स्थलों का विहार करके कापरडाजी के