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शासन सम्राट : जीवन परिचय,
फलोधी में चातुर्मास : (सं. १९७३)
फलोधी के संघ ने महाराज श्री से चातुर्मास के लिए की प्रार्थना का महाराज श्री ने स्वीकार किया और उसके अनुसार महाराज श्री फलोधी रूके । संघ आगे प्रयाण करके पुनः पालडी गांव आया । जेसलमेर के संघ से वापस आते हुए महाराज श्री फलोधी पधारे और वि.सं. १९७३ का चातुर्मास फलोधी में करने का निश्चय किया । फलोधी (फलवृद्धि) एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है । यहां प्राचीन समय का एक उपाश्रय है जो चोर्यासी गच्छ के उपाश्रय के रूप में प्रचलित है । इस उपाश्रय में कोई भी गच्छ के कोई भी साधु उतर सकते हैं । इस शहर की उदारता और सहिष्णुता कितनी है वह इस प्रकार के उपाश्रय से समझा जा सकता है । महाराज श्री चौभुजा के उपाश्रय में बिराजे थे और व्याख्यान देने के लिए प्रतिदिन चोर्यासी गच्छ के उपाश्रय जाते थे । यहां एक विलक्षण घटना ऐसी हुई कि प्रतिदिन एक कबूतर व्याख्यान प्रारंभ होने से पुर्व एक आरे (गोखला) में आकर बैठ जाता था और व्याख्यान पूर्ण होने पर वहाँ से उड जाता था । यहाँ के चातुर्मास के दौरान महाराजश्री ने नूतन जिन मंदिर, उपाश्रय, धर्मशाला इत्यादि बांधने के लिए उपदेश दिया था । राजस्थान में उस समय यतियों - श्री पूज्यों का प्रभाव अधिक था किन्तु महाराजश्री की विशाल उदार दृष्टि, सुन्दर वक्तृत्व और तेजस्वी मुखमुद्रा के प्रभाव के कारण यति भी महाराजश्री के व्याख्यान में आकर बैठते थे ।