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________________ शासन सम्राट : जीवन परिचय. प्रारंभ किया । गांव के बहुत से लोग एकत्रित हो गए महाराजश्री और उनके शिष्य भी उपस्थित थे । पत्थर निकालते ही आश्चर्य की सीमा न रही । उस प्रतिमा के दर्शन करके ही महाराज श्री ने गद्गद कंठ से स्तुति की । ऐसे अखंडित निकले अवशेषों को फौरन संभालना चाहिए। खुले में पड़े रहे वह ठीक नहीं है । महाराज श्री ने कहा कि अभी ही शेठ मनसुखभाई भगुभाई के नाम से ताला लगा सकें ऐसी जगह खरीद लो । खोज करते हुए एक अहीर का बरामदा गोरधनभाई ने खरीद लिया । उसके बाद दूसरे दिन मजदूरों से सभी अवशेष उठवाकर बरामदे में सुरक्षित रखवा दिए गए । । महाराज श्री ने पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा के सन्मुख बैठकर स्तुति की । काउसग्ग ध्यान किया और संकल्प किया कि इस तीर्थ का उद्धार शासन देवी की कृपा से मैं अवश्य करवाऊंगा । इस प्रकार प्राचीन शेरीसा तीर्थ के जीर्णोद्धार का प्रारंभ हुआ । महाराज श्री वहां से विहार करके ओगणज पधारे । मार्ग में भटक गये थे, परन्तु शासन देव की अलौकिक कृपा से सही मार्ग की ओर मुड गए थे । ओगणज से महाराज अहमदाबाद पधारे । वहां आकर महाराज श्री ने श्रेष्ठीयों को शेरीसा तीर्थ के इतिहास की और उस तीर्थ के जीर्णोद्धार की बात की । उस समय टीप करने की बात चली किन्तु जीर्णोद्धार के लिए पच्चीस हजार रुपए
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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