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शासन सम्राट: जीवन परिचय.
सके ऐसे समर्थ व्यक्ति के रूप में उन्हें पंन्यास श्री नेमिविजयजी में पूर्ण योग्यता दृष्टिगोचर हुई । अतः उन्होंने भावनगर के संघ के तथा बाहरगांव से पधारे संघ के आगेवानों के समप्त यह प्रस्ताव रखा और सभी ने उसे सहर्ष स्वीकार किया । इस प्रकार ज्येष्ठ सुदी पंचमी के दिन भावनगर में अट्ठाई महोत्सवपूर्वक अत्यंत धाम - धूम के साथ पंन्यास श्री नेमिविजयजी को आचार्यकी पदवी प्रदान की गई । भारत के अनेक नामांकित जैन इस महोत्सव में उपस्थित रहे थे । शुभेच्छा धन्यवाद के अनेक तार एवं पत्र आए थे । महाराजश्री की आचार्य की पदवी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना बनगई । भावनगर संघके आग्रह से पंन्यास जी महाराज ने आचार्यश्री विजयनेमिसूरी ने चातुर्मास भावनगर में किया । भावनगर का चातुर्मास पूर्ण होने के बाद महाराजश्री की निश्रा मे सिद्धाचलजी की यात्रा के लिए संघ निकला । पालीताणा से महाराज श्री महुवा पधारे । रास्ते में नैप नामक गांव समुद्रकिनारे आता है । वहां के एक वैष्णव भाई नरोत्तमदास ठाकरशी ने महाराज श्री से जैन धर्म अंगीकार किया। मच्छीमारों को प्रतिबोध :
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महाराजश्री ने देखा कि समुद्रकिनारे बसने वाले मच्छीमार मछली मारने का घोर हिंसा कार्य करते हैं, इसके लिए उन्हें बोध देना चाहिए । इस कार्य में नरोत्तमभाई का सहकार उपयोगी सिद्ध हुआ । महाराजश्री उनके साथ समुद्रकिनारे गए । उन्हें देखकर मच्छीमार आश्चर्यचकित हुए । महाराज श्री ने सभी को एकत्रित करके उपदेश
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