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शासन सम्राट: जीवन परिचय.
अहमदाबाद के बाद महाराजश्री के धर्मप्रचार का विस्तृत क्षेत्र खंभात था । उन्होंने यहां भंडारो की हस्तप्रतों को व्यवस्थित करवाया, तथा कन्याओं की प्राथमिक शिक्षाके लिए श्री वृद्धिचंद्रजी जैन कन्याशाला की स्थापना करवाई ।
चातुर्मास के बाद महाराजश्री विहार करते हुए अहमदाबाद होकर कलोल पधारे । वहां प्रतिष्ठा करवाकर भोयणी, शंखेश्वर, इत्यादि तीर्थों की विहार यात्रा करते करते वे भावनगर पधारे । भावनगर में जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स का आयोजन शेठ मनसुखभाई भगुभाई की अध्यक्षता में हुआ । इस अधिवेशन में महाराजश्री प्रतिदिन भिन्न-भिन्न विषयों पर व्याख्यान देते थे । उनका व्याख्यान इतना तार्किक और विद्वतापूर्ण होता था कि सुनने के लिए भावनगर राज्य के दीवान सर प्रभाशंकर पट्टणी, गायकवाडी सुबा, जुनागढ के दीवान तथा अन्य राज्याधिकारी भी आते थे ।
भावनगर में आचार्यपद - प्रदान :
भावनगर की इस जैन कोन्फरन्स में देशभर से प्रतिनिधि
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आए थे । कोन्फरन्स के आगेवानो ने उस समय पंन्यास श्री गंभीरविजयजी तथा श्री मणिविजयजी के साथ विचार विमर्श किया कि तपगच्छ में कोई आचार्य नहीं है । पंन्यासश्री गंभीरविजयजी ने उन्हें पदवी प्रदान करें ऐसे आदरणीय मुनिराज न होने से तथा शरीर की अशक्ति के कारण इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने से स्पष्ट अनिच्छा प्रकट की । विधिपूर्वक योगोद्वहन क्रिया हो और शासन की जिम्मेदारी संभाल