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शासन सम्राट: जीवन परिचय.
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श्री ने उसे और दूसरे एक भाई त्रिभोवनदास को जिसे दीक्षा लेनी थी उन्हें कासीन्द्रा नामक छोटे गांव में भेजा और वहां श्री सागरजी महाराज तथा श्री सुमति विजयजी महाराज के यहां जाकर उन दोनों को दीक्षा देने का प्रस्ताव रखा । उसके अनुसार धामधूम बिना ही दीक्षा दी गई और बालक का नाम रखा गया मुनि यशोविजयजी और उन्हें महाराज श्री के रूप में घोषित किया गया । थोडा समय अन्योत्र विचरण कर चातुर्मास में महाराज के साथ जुड गए । यह तेजस्वी बाल मुनि महाराज श्री को अत्यंत प्रिय था ।
योगोद्बाहन :
अहमदाबाद के इस चातुर्मास के बाद भावनगर से महाराज श्री के आदरणीय गुरु बंधु पंन्यास श्री गंभीर विजयजी का संदेशा आया। गुरु महाराज श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज ने पंन्यास श्री गंभीर विजयजी को आज्ञा दी थी कि समय आने पर उन्हें महाराज श्री नेमिविजयजी को योगोद्वहन करवाना है । इसलिए श्री गंभीर विजयजी ने महाराजश्री को भावनगर बुलवाया था । महाराजश्री का स्वास्थ्य इतना अच्छा न था कि विहार का श्रम उठा सके । अतः ये समाचार आने पर और अहमदाबाद के श्रेष्ठीयों के स्वयं जाकर प्रार्थना करने पर श्री गंभीरविजयजी स्वयं विहार कर अहमदाबाद पधारे और महाराज श्री को 'उत्तराध्ययन सूत्र' का योगोद्वहन करवाया और वि.सं. १९५७ का चातुर्मास भी उन्होंने साथ ही पांजरा पोल के उपाश्रय में किया । तत्पश्चात १९५८ का चातुर्मास भी उन्होंने अहमदाबाद में ही किया । अन्य कुछ आगमों