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शासन सम्राट: जीवन परिचय.
किन्तु ऐसा किसी ग्रंथ में लिखा हो तो श्रावकगण बताए न ? वस्तुतः उन दिनों संस्कृत भाषा और शास्त्रों का अभ्यास घट गया था इसीलिए ऐसी बात प्रचलित हुई होगी ।
वढवाण में चातुर्मास : (सं.
१९५२)
राधनपुर से विहार करके महाराजश्री शंखेश्वर होकर वढवाण पधारे और वि.सं. १९५२ का चातुर्मास वढवान में किया । चातुर्मास के बाद महाराजश्री लींबडी पधारे। वहां मुनि आनंदसागर (सागरजी महाराज) मिले । मुनि आनंदसागर उम्र तथा दीक्षा पर्याय में छोटे थे । यद्यपि भाषा, व्याकरण तथा शास्त्र अभ्यास के लिए बहुत उत्सुक थे । अतः महाराज श्री ने उन्हें कुछ दिन साथ रहकर व्याकरण का अभ्यास करवाया । तत्पश्चात् विहार करके महाराजश्री पालीताणा पधारे ।
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अहमदाबाद में चातुर्मास : (सं. १८५३)
पालीताणा में उस समय श्रीदानविजयजी बिराजमान थे । वे विद्वान और तार्किक शिरोमणि थे । उनकी व्याख्यान शैली भी छटा पूर्ण थी । उन दिनों पालीताणा के ठाकुर का शेत्रुंजय तीर्थ के संदर्भ में जैनों के साथ संघर्ष चल रहा था । किन्तु पंजाबी निडर मुनि दानविजयजी व्याख्यान में बारबार उद्बोधन करते थे कि ठाकुर की तानाशाही स्वीकार नहीं करनी चाहिए । इससे ठाकुर श्री दानविजयजी पर कडी नजर रखता था । श्री नेमविजयजी को लगा कि यह संघर्ष अभी बढाना उचित नहीं है । श्री दानविजयजी की