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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
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का यह प्रथम अनुभव ही था । किन्तु यह अनुभव इतना सुंदर था कि बाद में महाराज श्री के चातुर्मास के पश्चात बहुत से स्थलों से तीर्थयात्रा संघ का आयोजन होने लगा । महुवा में चातुर्मास : (सं. १९५१)
महाराजश्री को दीक्षा ग्रहण किए लगभग छह वर्ष हो गए थे । दीक्षा ग्रहण करने के बादवे अपनी जन्मभूमि नहीं गए थे । अतः महुवा के संघ ने उन्हें वि.सं.१९५१ का चातुर्मास महुवा में करने के लिए पधारने का आग्रहपूर्ण अनुरोध किया । जामनगर के चातुर्मास और तीर्थयात्रा संघ के बाद विहार करते-करते महाराज श्री ने जब महुवा में प्रवेश किया तब महोत्सवपूर्वक उनकी भव्य अगवानी की गई । दीक्षा के पश्चात महाराज श्री का महुवा में यह प्रथम प्रवेश था । उनके माता-पिता भी जीवित थे । महाराज श्री उनके घर गोचरी के लिए पधारे तब अपने दीक्षित पुत्र को गोचरी (मधुकरी) देते हुए वे गद्गद् हो गए ।
महुवा में महाराजश्री ने मैत्री इत्यादि चार भावनाओं पर सुंदर व्याख्यान दिए । उनकी आवाज बुलंद थी । विशाल जनमेदनी उनके व्याख्यानों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी । इस चातुर्मास के दौरान महाराज श्री के हाथों दो महत्वपूर्ण कार्य हुए (१) उनकी प्रेरणा से महुवा में पाठशाला की स्थापना की गई और उसके लिए दान की रकम महाराज श्री के बाहरगांव के दो भक्तों की ओर से