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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
अभ्यास करके आए संस्कृत में बोलनेवाले एक नाथालाल नामक भाई ने संस्कृत -संभाषण और शास्त्रचर्चा के लिए चुनौती दी । महाराज श्री ने उसे स्वीकार कर लिया । महाराज श्री जिस प्रकार शुद्ध संस्कृत में धाराप्रवाह बोलते थे और उचित उत्तर दे रहे थे, उसे देखकर निर्णायकों ने महाराज श्री को विजयी घोषित किया । इससे गुरु महाराज बहुत प्रसन्न हुए । अभ्यास कराने वाले पंडितों को अपना श्रम सार्थक प्रतीत हुआ । महाराज श्री की प्रसिद्धि इस प्रसंग से बहुत बढ गई। पालीताणा में चातुर्मास : (सं. १९४९)
उन दिनों पंजाबी साधु श्री दानविजयजी ने पालीताणा में श्री बुद्धिसिंहजी जैन संस्कृत पाठशाला की स्थापना की थी । श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज की भी इस संदर्भ में प्रेरणा थी । श्री दानविजयजी ने देखा कि श्री नेमिविजयजी को पढने की लालसा बहुत है और पढने की शक्ति भी बहुत अच्छी है । अतः उन्होंने श्री वृद्धिचंद्रजी को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि श्री नेमिविजयजी पालीताणा में रहकर चातुर्मास करे । इस अनुरोध के स्वीकार होने पर श्री नेमिविजयजी ने वि.सं. १९४९ का चातुर्मास पालीताणा में करने के लिए चैत्र महिने में विहार किया । दूसरी ओर थोडे ही दिनों में बैसाख सुद सप्तमी के दिन श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज का काल धर्म हुआ । अंतिम समय वे गुरुमहाराज के पास न रह पाए इस बात का गहरा शोक महाराज श्री नेमिविजयजी को हुआ ।