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________________ शासन सम्राट: जीवन परिचय. १५ उस समय श्री अमरचंद जशराज, श्री कुंवरजी आणंदजी इत्यादी रात्रि के समय आतें और बारह - एक बजे तक चर्चा होती थी । महाराज श्री का स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी उन्होंनें स्वयं किसी को “आप अब जाइए" ऐसा नहीं कहा । महाराज श्री नेमिविजयजी ने देखा कि गुरुमहाराज को बहुत कष्ट होता है । एक दिन गुरुमहाराज ने नेमिविजयजी से कह ही दियाः- देखो नेमा मेरा शरीर अस्वस्थ है और ये लोग रोज मुझे जागरण करवाते हैं । उस रात जब श्रावक आए तो महाराज श्री नेमिविजयजी ने श्रावकों से कह दिया कि - 'आप सब गुरु महारज की भक्ति करने आते हैं या जागरण कराने ।' समझदार श्रावक फौरन बात समझ गए दूसरे दिन से वे जल्दी आने और जल्दी ही उठने लगे । शास्त्राघ्ययन में प्रगति : महाराज श्री नेमिविजयजी बराबर चार चातुर्मास: अपने गुरुमहाराज के साथ भावनगर रहे । गुरु महाराज की वैयावच्च और स्वयं के स्वाध्याय के लिए यह बहुत आवश्यक था । इससे महाराज श्री का शास्त्राभ्यास बहुत अच्छा रहा । वे प्रतिदिन सौ श्लोक कंठस्थ करते थे । हेमचंद्राचार्य के व्याकरण के अतिरिक्त पाणिनी के व्याकरण का भी उन्होंने सुन्दर अभ्यास किया । उन्होंने मणिशंकर भट्ट, नर्मदाशंकरशास्त्री तथा राज्य के शास्त्री भानुशंकर भाई इन तीन अलग-अलग पंडितों से अभ्यास किया । उनकी वाक्य छटा भी बहुत प्रभावक थी । इस संदर्भ में महाराज श्री की प्रसिद्धि फैलने पर काशी से :
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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