________________
शासन सम्राट : जीवन परिचय.
गए । किन्तु अब व्याख्यान पढे बिना मुक्ति न थी । उनकी तैयारी तो थी ही और आत्मविश्वास भी था अतः गुरुमहाराज को भाव वंदनकर उनके आशिर्वाद के लिए प्रार्थना कर व्याख्यान पढ़ना शुरु किया । फिर तो उनकी वाणी धाराप्रवाह बहने लगी । अतः व्याख्यान में बैठे जशराजभाई और अन्य श्रावकगण आश्चर्यचकित रह गए । व्याख्यान पूर्ण होने पर उन्होने नेमिविजय के व्याख्यान कौशल की भूरि-भूरि प्रशंसा की और गुरु महाराज के समक्ष भी बहुत प्रशंसा की । बडी दीक्षा :
श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज श्री नेमिविजयजी को बड़ी दीक्षा देने वाले थे किन्तु मूलचंद महाराज के कालधर्म के पश्चात योगोद्वहन करवाकर बड़ी दीक्षा दे सके ऐसा कोई न रहा था । अतः महाराजश्री नेमिविजयजी को जहां भेजा गया था वहां पन्यास श्री प्रतापविजयजीने योगोद्वहन करवाने के बाद महाराज श्री नेमिविजयजी को बडी दीक्षा दी । इसके बाद महाराज श्री नेमिविजयजी विहार कर अपने गुरु महाराज के पास वापस आए ।
उन दिनों श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज भावनगर में स्थायी हो गए थे, क्योंकि उन्हें संग्रहणी और संधिवा (जोड़ों का दर्द) का दर्द हो गया था । तबियत अस्वस्थ होते हुए भी वे चारित्र्यपालन में स्वध्याय में शिष्यों को अभ्यास करवाने में कठिन नियमों का पालन करनेवाले थे । तत्त्व-पदार्थ का उन्हें अच्छा ज्ञान था इसीलिए गृहस्थ भी उनके पास शंका-समाधान और ज्ञान-गोष्ठी के लिए आते थे ।