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________________ शासन सम्राट : जीवन परिचय. १३ उस गृहस्थ को समझाते समय मुनि नेमिविजयजी की वाणी धाराप्रवाह बहती है । उनकी वाणी संस्कारी है और उच्चारण शुद्ध है । उनके विचार सरलता से बहते हैं । व्याख्यान देने की उनमें सहजशक्ति प्रतीत होती है । वृद्धिचंद्रजी महाराज शिष्यों के विकास में हमेशा उत्साही रहते थे । प्रसंग देखकर शिष्यों को वे अचानक बडी जिम्मेदारी सौंप देते थे, और उनका आत्मविश्वास बढा देते थे । पर्युषण पर्व के दौरान एक दिन जशराजभाई से कहा कि : 'कल का व्याख्यान मुनि नेमिविजयजी पढ़ेगे । किन्तु यह बात अभी किसी को कहना मत' इससे जशराजभाई को आश्चर्य हुआ । व्याख्यान-प्रारम्भ : . दूसरे दिन गरुमहाराज ने नेमिविजय के हाथ में 'कल्पसूत्र' की सुबोधिका टीका की हस्तप्रत के पृष्ठ दिए और व्याख्यान खंड में जाने के लिए कहा । उन्होंने नेमिविजय को अपना 'कपडा' पहनने को दिया । किन्तु नेमिविजयजी कुछ समझे नहीं । गुरुमहाराज ने व्याख्यान पढ़ने वाले मुनि चारित्रविजयजी के साथ ऐसा मेल बैठाया था कि सभाखण्ड में नेमिविजयजी को अचानक ही व्याख्यान देने के लिए विवश होना पडता । नेमिविजयजी नीचे के मंच(तख़त) पर बैठने जा रहे थे कि चारित्रविजयजी ने उन्हें अपने निकट बैठाया और श्रावक श्राविकाओं को प्रथम पचक्खाण देकर घोषणा की कि आज का व्याख्यान मुनि नेमिविजयजी पढ़ेगें । इतना कहकर वे फौरन मंच से उतरकर चले गए । नेमिविजयजी अचानक विचार में पड
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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