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________________ शासन सम्राट : जीवन परिचय. हो गए । तत्पश्चात मुनि नेमिविजयजी तथा गुरुमहाराज श्रीवृद्धिचंद्रजी ने उन्हे बहुत समझाया अंतः वे शांत हुए और परिस्थिति को स्वीकार कर महुवा वापस चले गए । शास्त्राभ्यास : मुनि नेमिविजयनी ने गुरुमहाराजश्री वृद्धिचंद्रजी से शास्त्राभ्यास प्रारंभ किया गुरुमहाराज ने देखाकि नेमिविजयजी बहुत तेजस्वी हैं । उनकी स्मरण शक्ति और ग्रहण-शक्ति बहुत अच्छी है । वे श्लोक भी शीध्र कंठस्थ कर लेते हैं और उनके साथ वार्तालाप में भी उनके विचारों की प्रस्तुति विशद और क्रमबद्ध होती है । अत: गुरुमहाराज ने उनके विशेष अभ्यास के लिए पंडित की व्यवस्था की नेमिविजयजी ने संस्कृत व्याकरण अलंकार शास्त्र इत्यादि का अभ्यास प्रारंभ किया। हेमचंद्राचार्य और यशोविजयजी के संस्कृत प्राकृत ग्रंथों का अभ्यास गुरु महाराज स्वयं करवाने लगे । प्रथम चातुर्मास भावनगर में ही करने का निर्णय किया । चार छ: महिने में तो मुनि नेमिविजयजी की प्रतिभा खिल उठी । वे अपने से उम्र में बड़े महुवा - निवासी गुरुबंधु मुनि धर्मविजयजी को भी संस्कृत का अभ्यास करवाने लगे । उपाश्रय में प्रतिदिन साधुओं को प्रणाम करने आनेवाले कुछ लोग मुनि नेमिविजयजी के पास बैठते थे । कभी कोई प्रश्न हो तो नेमिविजयजी उन्हें समझाते थे । एक गृहस्थ तो उनके पास प्रतिदिन नियमित आते थे । एक दिन गुरु महाराज ने देखा कि
SR No.002300
Book TitleShasan Samrat Jivan Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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