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शासन सम्राट : जीवन परिचय.
है । वृद्धिचन्दजी महाराज ने दीक्षा विधि पूर्ण की और नेमचन्दभाई का नाम नेमविजयजी रखा । इस प्रकार से वि.स. १९४५ की जेठ सूद ७ के दिन नेमचन्दभाई मुनि नेमिविजयजी बन गए ।। माता पिता की व्यथा, समझाने का प्रयत्न :
इस ओर महुवा में मालूम हुआकि नेमचंदभाई और दुर्लभ ऊँट पर बैठकर भावनगर भाग गए हैं । अत: लक्ष्मीचंद द्विविधा में पड गए । माताश्री दिवालीबहन घर के स्वजन रोने लगे । लक्ष्मीचंदभाई ने सोचा कि यदि नेमचंदभाई ने दीक्षा न ली हो तो उन्हें रोक कर पुनः घर ले आना चाहिए । लक्ष्मीचंदभाई और दिवालीबहन महुवा से भावनगर जाने के लिए निकले । उन दिनों शीध्र यात्रा संभव न थी । थोडे दिन में लक्ष्मीचंदभाई भावनगर आ पहुंचे उन्होंने उपाश्रय में आकर देखा कि पुत्र नेमचंदभाई ने दीक्षा लेली है । वे क्रोधित हुए वाद-विवाद हुआ । वृद्धिचंद्रजी महाराज और मुनि नेमिविजयजी ने संपूर्ण शांति और स्वस्थता धारण की । लोग एकत्रित हो गए। बहुतो ने लक्ष्मीचंदभाई को समझाया किन्तु वे न माने । वे बाहर गए और भावनगर के मेजिस्ट्रेट को लेकर उपाश्रय में आए और अपने पुत्र को पुनः प्राप्त करने का प्रस्ताव रखा । मेजिस्ट्रेट ने मुनि नेमिविजयजी की हरतरह से उलट-तपास की । अंत में लक्ष्मीचंदभाई से कहा कि इस लडके को बलजबरी से दीक्षा नहीं दिलाई गई । उसने स्वयं अपनी इच्छा से दीक्षा ली है । अतः राज्य इस संदर्भ में कानूनन कुछ नहीं कर सकता । इस बात से लक्ष्मीचंदभाई निराश